07 फ़रवरी 2016

इस मंदिर में भ्रष्ट न्यायाधीशों, अधिकारियों और नेताओं का प्रवेश वर्जित है

विचार के धाराओं में बँटने का आधार असहमतियाँ हैं। असहमतियाँ विचार-धाराओं का ध्रुवीकरण भी करती है। असहमतियों का होना जरूरी है क्योंकि यही गतिशील समाज का द्योतक है। इसके अभाव में समाज जड़ हो जायेगा। विचार एक-दूसरे से विमर्श के सहारे टकराती है। समाज की हर इकाई धाराओं का अपनी परिस्थितियों के अनुकूल मू्ल्यांकन करती है। समाज की कुछ इकाईयों का अधिकांश हिस्सा अक्सर सम्पूर्ण वेग से बहती धारा के साथ बहना ही पसंद करता है। उसका मकसद इसके जरिये अपनी गति को धारा की गति के बराबर अथवा समकक्ष लाना होता है।

कुछ ऐसे भीहोते हैं जो धारा के उर्ध्व चलते हैं। इसमें खतरे अधिक होते हैं। फायदे कम लेकिन चिरस्थायी होते हैं। जब विचार की कोई धारा लम्बे समय तक अस्तित्व में रहती है तो उससे कई विसंगतियाँ पैदा होती है। ये विसंगतियाँ कालांतर में अपने ही अस्तित्व के लिये खतरा बनती है। अक्सर उस विचार के धारा की गति कुंद होने का कारण भी यही होती है।

नागरिकों के साथ यही होता है। राज और तंत्र ऐसे ही चलते हैं। लम्बे समय तक रेंग-रेंग कर चलने वाले तंत्र की विसंगतियों का ही परिणाम भ्रष्टाचार है। तंत्र में शिथिलता का मुख्य कारण उसकी अकर्मण्यता है। यह रोष को जन्म देता है जिसके उत्प्रेरक वो लोग होते हैं जो गलत दिशा में अनुप्रवाह चलना पसंद नहीं करते। आज एक ऐसे ही उत्प्रेरक की लोक मीडिया पर प्रचलित कहानी की एक झलकी इस ब्लॉग में टाइप की जा रही है।


भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर

यह कहानी है एक ऐसे मंदिर की जिसका निर्माण कराने वाला भ्रष्ट तंत्र के आगे घुटने नहीं टेकता। वह तंत्र से जूझता है। तंत्र को तंत्र से ही काटने की कोशिश करता है। इसी कोशिश में वह एक मंदिर बनवाता है जिसमें भ्रष्ट न्यायाधीशों, अधिकारियों और नेताओं का प्रवेश तक वर्जित है। उत्तर प्रदेश में कानपुर विश्वविद्यालय के पीछे बने इस मंदिर  का नाम भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर है। निर्माण के उद्देश्यों को शुरू से ही अमल में लाया गया और इसके लोकार्पण के लिये प्रचलित तरीके को नहीं अपनाया गया। इस मंदिर का लोकार्पण पवन राणे बाल्मीकि नामक विशिष्ट योग्यता रखने वाले व्यक्ति से कराया गया। 

निजी जमीन पर बने इस मंदिर में शनि की प्रतिमा स्थापित की गयी है। शनि-मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के पीछे का तर्क यह है कि इनकी कुदृष्टि भ्रष्ट न्यायाधीशों, नेताओं और अधिकारियों पर पड़ी रहे। लोक मीडिया पर उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर इस मंदिर में ऐसे लोगों की तस्वीरें इस तरीके से टंगी हैं कि शनि देव की सीधी नजर इन पर पड़े। इसका मकसद बस यही है कि उच्च पदों पर बैठे लोग भ्रष्ट आचरणों से बचें और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें।

भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर में आम नागरिकों के प्रवेश पर कोई रोक-टोक नहीं है। हालांकि, ऊपर से नीचे बह रहे भ्रष्टाचार के प्रवाह में छक कर नहाये लोगों के लिये इसमें प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। इस मंदिर की दीवारों पर टंगे सूचना-पट्ट  में वर्णित शर्त के अनुसार बीस वर्ष के बाद तंत्र की स्थिति में सुधार के बाद इन वर्गों के लोगों को भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर में प्रवेश मिल सकता है।




भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर में मूर्तियों के ऊपर तेल चढ़ाना,प्रसाद चढ़ाना और घंटा बजाना निषिद्ध है। हालांकि, यहाँ बेरोकटोक लौंग, इलायची और काली मिर्च का चढ़ावा चढ़ाया जा सकता है। इसके साथ मिट्टी के दीये जलाये जा सकते हैं। भ्रष्ट तंत्र विनाशक शनि मंदिर में कुछ और वर्ग के लोगों का प्रवेश वर्जित है जिनमें शराबी हैं। इस मंदिर परिसर में कुछ कार्यों को घृणित कार्यों की सूची में रखा गया है जिनमें थूकना, खैनी चबाना आदि। इस ंमंदिर का निर्माण आरटीआई कार्यकर्ता रॉबी शर्मा ने कराया है। तो अगली बार अगर आप तीर्थों की यात्रा पर निकलें तो एक दर्शन इस मंदिर के भी कर लें। 

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